मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का जन्म

  अरब के रेगिस्तान में 23 अप्रैल सन 571 ई0 सोमवार के दिन हुआ। 'मुहम्मद' का अर्थ होता है 'जिसकी बहुत ज्यादा प्रशंसा की गई हो'।हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के वालिद का नाम अब्दुल्लाह था, दादा का नाम अब्दुल मुत्तलिब था, जो हाशिम बिन मन्ये मुनाफ़ बिन कुसई के बेटे थे । वालिद अब्दुल्लाह की शादी क़बीला जोहरा में वह बिन दे मुनाफ़ की लड़की से हुई, जिन का नाम आमना था । आप के खानदान का नाम कुरैश था जो अरब के तमाम खानदानों से कितनी ही पीढ़ियों से इज्जत और शोहरत वाला माना जाता था । हरमे काबा के मुतवल्ली होने की वजह से क़ुरैश को तमाम अरब में बड़ी इज्जत और अहमियत हासिल हो गयी थी ।

  वालिद का इन्तिकाल आप के जन्म से पहले ही हो चुका था। दादा अब्दुल मुत्तलिब की देख-रेख में आप की परवरिश शुरू हुई। सब से पहले आप की वालिदा हजरत आमिना ने दूध पिलाया। उस जमाने में यह आम रिवाज था कि शहर के बड़े लोग अपने बच्चों को दूध पिलवाने ओर बढ़ने-पलने के लिए देहात और कस्बों में भेज देते थे, ताकि वहां की खुली हवा में रह कर उन की सेहत अच्छी हो जाए और वे बहुत अच्छी 'जुबान भी सीख जाएं। इस रिवाज के मुताबिक देहात की औरतें शहर में आया करती थीं और बच्चों को परवरिश के लिए अपने साथ ले जाती थीं। चुनांचे हजरत मुहम्मद(स०अ०स०) की पैदाइश के कुछ दिनों बाद ही कबीला हवाजिन की कुछ ओरतें बच्चों की खोज में मक्के आयीं। उन में हलीमा सादिया भी थीं। यही वह खुशनसीब ओरत हैं, जिन को जब कोई दूसरा बच्चा न मिला, तो मजबूर होकर उन्हों ने आमिना के यतीम बच्चे को ले लेना ही मंजूर कर लिया।

 आप की उम्र चार साल की हुई तो आप की वालिदा ने आप को अपने पास रख लिया । आप छः साल के हुए तो आपकी मां बीबी आमना का इन्तिकाल हो गया । जब हजरत मुहम्मद सल्ल० की उम्र आठ साल की हुई, तो दादा अब्दुल मुत्तलिब ने भी इन्तिकाल फ़रमाया। मरते वक़्त उन्होंने आप की परवरिश की जिम्मेदारी अपने लड़के अबूतालिब को सुपुर्द के, जिन्होंने अपनी इस जिम्मेदारी को बहुत अच्छी तरह निभाया। अबू तालिब हजरत मुहम्मद सल्ल० के सगे चाचा थे।

 हज़रत खदीजा रज़ि०से निकाह

  जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जवान हुए, तो आप का ख्याल पहले तिजारत की तरफ़ हुआ, मगर घर का रुपया पास न था । मक्का में निहायत शरीफ़ खानदान की एक बेवा औरत खदीजा थीं। वह बहुत मालदार थीं। अपना रुपया तिजारत में लगाए रखती थीं। उन्होंने आहजरात सल्ल० खूबियां और आप की सच्चाई, ईमानदारी का हाल मालूम करके खुद दरख्वास्त कर दी कि उस के रुपए से तिजारत करें। आप सल्ल० उन का माल ले कर तिजारत को गए। इस तिजारत में बहुत फायदा हुआ और आप की बहुत सी खूबियां भी जाहिर हुई। 

 इन खूबियों को मालूम कर के हजरत खदीजा ने आप से निकाह को दरख्वास्त की, हालांकि हजरत खदीजा इस से पहले बड़े बड़े सरदारों के निकाह की दर्खास्त को रद्द कर चुकी थीं। दर्खास्त आप ने मंजूर कर ली और तारीख तै हो गयी। अबू तालिब ने निकाह का खुत्बा पढ़ा और पांच सौ तीलाई दिरहम पर निकाह हो गया। शादी के वक्त हजरत खदीजा की उम्र चालीस साल थी और आप सिर्फ़ पच्चीस साल के नव जवान थे।  


नूबूवत का मिलना

  जब आप 40 साल के हुऐ तो आप इबादत और कोम की फिक्र में गारे हीरा मे तसरीफ ले जाया करते थे।जो मक्का से 3km ki दूरी पर थी। एक दिन आप यू ही ईबादत मे बैठे हुऐ थे ।अल्लाह का भेजा हुआ फरिश्ता हाजिर हुआ जिसका नाम जिब्रील था।। और आप से पढ़ने के लिऐ कहा लेकिन आप पढ़े हुऐ नहीं थे तो आपने कहा की मैं पढ़ा हुआ नही हूं। जिब्रिल अ० ने आपको पकड़ कर इतनी जोर से भींचा की आप थक गए फिर जिब्रिल ने कहा कि पढ़ आप सल्ला० ने फिर वही जवाब दिया की में पढ़ा हुआ नही हूं। फिर दुबारा जिब्रिल ने इसी तरह पकड़ कर भींचा और कहा पढ़ और कुरान की यह आयत तिलावत फरमाई जिसका

 तर्जुमा: 'अपने रब के नाम से पढ़, जिस ने इंसान को जमे हुए खून से पैदा किया। पढ़ और तेरा रब बड़ा बुजुर्ग है, जिसने कलम के जरिए सिखाया और इंसान को वह कुछ सिखाया, जो वह नहीं जानता था। 

 यह सबसे पहले वाह्यी नाजिल हुई। और आपको नुबुवत मिल गई और इसके बाद वह्यी का सिलसिला शुरू हो गया और यहां से आपकी तबलीगी जिंदगी की शुरुआत होती है। 

 हुजूर सल्ला० की बीमारी और वफात